बिना रोए न साहित्य हो सकता है न संगीत। मैं यहाँ रोऊँगा भी और गाऊँगा भी। साहित्य और संगीत दोनों मेरे विचार का विषय रहेंगे। इसलिए भी कि एक साथ दोनों विधाओं पर टिप्पणी करने वाले अधिकारी विचारक अब न के बराबर रह गए हैं। ओहो... अब देखिए न, मैं ही अपने बारे में ग़लतफ़हमी पाल बैठा। मैं ही कौन-सा अधिकारी विचारक हूँ? इसीलिए तो यहाँ मैं रोऊँगा और गाऊँगा। प्लीज़, बुरा न मानें।